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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
हैं रंग भरे जाने कितने रंगदार बगीचे में
हर रंग को फूलों का देखा अम्बर बगीचे में।

क्या ख़ूब बहारों के मौसम मालिक ने दिये देखो
हर सिम्त बरसता कुदरत का बस प्यार बगीचे में।

पाले न कोई मन में नफ़रत दिल में न गिला शिकवा
हिल-मिल के मनाएं हम सारे त्यौहार बगीचे में।

मेहमान के आने पे होता दिल खोल यहां स्वागत
पलकों को बिछा,बाहें फैला सत्कार बगीचे में।

इक प्यार की ताक़त से जीते हर जंग बख़ूबी हम
सम्मान न हासिल कर पाई तलवार बगीचे में।

हर सुब्ह महब्बत का देती पैग़ाम ये दुनिया को
हर शाम को जन्नत का करिये दीदार बगीचे में।

'विश्वास' बगीचे की लाज़िम हर तौर हिफाज़त हो
कीड़ा न कहीं लगने पाए फलदार बगीचे में।

</poem>
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