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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
पंछी उड़ा उदास हो कर अनमना हुजूर
पाया नहीं दरख़्त जब कोई घना हुज़ूर।

सुनिये किसी फ़क़ीर के ये लफ्ज़ बेमिसाल
टूटा ज़रूर एक दिन जो भी तना हुज़ूर।

रखना है अपनी शान का थोड़ा अगर ख़याल
बेहतर है छोड़ दीजिये ललकारना हुज़ूर।

इक रोज़ ये सवाल खुद से पूछ लीजिये
आसान कब रहा यहां सच बोलना हुज़ूर।

कोई मिले न आपको मुंह पर ग़लत जवाब
ऐसे सवाल फिर कभी मत पूछना हुज़ूर।

होने लगे शरीफ भी जब नाच कर अमीर
पेशा बुरा कहां रहा फिर नाचना हुज़ूर।

उजलत में मत उठाइए लबरेज़ जाम को
'विश्वास' होश में पिएं शरबत छना हुज़ूर।
</poem>
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