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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
होशो-हवास गुम हैं इस बात पर हमारे
वो चार दिन की ख़ातिर आएंगे घर हमारे।

सुन कर खबर तुम्हारी आमद की यूँ लगा है
गोया निकल पड़े हों शानों से पर हमारे।

क्या नज़्म थी जो उसने उस बज़्म में सुनाई
ये शायरी पड़ी है उस दिन से सर हमारे।

एहसासे-कमतरी दे हालत न अपने घर की
धड़कन बढ़ा रहा है सीने में डर हमारे।

वल्लाह क्या नज़र थी डाली जो उसने हम पर
सीने में चुभ गया है तीरे-नज़र हमारे।

अंदाज़ उसके घायल करने का छुप रहा है
ज़ख्मों पे फाहा मत रख अय चारागर हमारे।

'विश्वास' वो हसीना बोलेगी आ के उर्दू
सारे महक उठेंगे दीवारो-दर हमारे।

</poem>
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