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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इक पल में हंसा देता इक पल में रुला पानी
गुस्सा हो तो पल में दे मिट्टी में मिला पानी।
ख़त लिख तो लिया रो-रो अब किसका पता लिख दूँ
इस आंच में सारा दिन रह-रह के जला पानी।
एहसान मेरे सिर पर उनका भी लिखो जिनसे
जलते हुए होंटों को दो बूंद मिला पानी।
जिस तिस की दुहाई दे, सौ बार क़सम ली जब
तब जाके कहीं उनके पेंदे का हिला पानी।
उन सबको दुआ मेरी, इंसान जो दुनिया में
थमती हुई सांसों को देते हैं पिला पानी।
आंखें थी छलक आईं देखा था नमक ले, जब
मासूम ने रोटी पर उंगली से मला पानी।
फरियादी गया लूटा जब शाम को थाने में
'विश्वास' को चुल्लू भर ढूंढें न मिला पानी।
</poem>
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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
इक पल में हंसा देता इक पल में रुला पानी
गुस्सा हो तो पल में दे मिट्टी में मिला पानी।
ख़त लिख तो लिया रो-रो अब किसका पता लिख दूँ
इस आंच में सारा दिन रह-रह के जला पानी।
एहसान मेरे सिर पर उनका भी लिखो जिनसे
जलते हुए होंटों को दो बूंद मिला पानी।
जिस तिस की दुहाई दे, सौ बार क़सम ली जब
तब जाके कहीं उनके पेंदे का हिला पानी।
उन सबको दुआ मेरी, इंसान जो दुनिया में
थमती हुई सांसों को देते हैं पिला पानी।
आंखें थी छलक आईं देखा था नमक ले, जब
मासूम ने रोटी पर उंगली से मला पानी।
फरियादी गया लूटा जब शाम को थाने में
'विश्वास' को चुल्लू भर ढूंढें न मिला पानी।
</poem>