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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
इस तरह सच के मुंह पर जो ताले पड़ेंगे
नेक नीयत के बंदों के लाले पड़ेंगे।

मकड़ियां कर रहीं घर को गंदा बहुत
साथियों साफ करने ये जाले पड़ेंगे।

वाक़ई फिर तो मुश्किल मिटाना गरीबी
जब मुसल्सल दिखाई घोटाले पड़ेंगे।

और कुछ दिन यही हाल ज़ारी रहा तो
क्या पता कितने महँगे निवाले पड़ेंगे।

जो सियाही लगाने की पाले तमन्ना
पेश्तर, हाथ उसके ही काले पड़ेंगे।

दिन में तारे नज़र आएंगे पल में बेशक
गर किसी दिन हमारे वो पाले पड़ेंगे।

सीख 'विश्वास' लो तन के ललकारना तुम
तब कहीं अपने हिस्से उजाले पड़ेंगे।
</poem>
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