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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
मुसीबत में जब कोई ग़म-ख़्वार आये
ख़ुदा उसका बन कर मददगार आये।

बदलते ही मौसम ये बदलाव आया
परिंदे कई उड़ नदी पार आये।

ये कुदरत का देखा है हमने करिश्मा
जहां गुल खिले हैं वहीं ख़ार आये।

वो करने लगे फ़िक्र उस दिन से घर की
कई ज़लज़ले जब लगातार आये।

न ग़फ़लत में पड़ना, न करना महब्बत
मुक़ाबिल में जब कोई अय्यार आये।

करो सिर्फ मालिक से अपने गुज़ारिश
घड़ी तुम पे जब कोई दुश्वार आये।

न बेचा क़लम हमने विश्वास अब तक
बहुत से क़लम के खरीदार आये।
</poem>
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