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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
काट ही लेंगे तुझे ये वक़्त पाकर देख ले
चाहे जितना खून सांपों को पिला कर देख ले।

हो गया जब जंग का ऐलान चल दिल खोलकर
जितने भी हों तीर तरकश में चला कर देख ले।

आग में इतना तपा हूँ अब न कोई फ़िक्र है
हर कसौटी पर मुझे चढ़ा कर देख ले।

पर होगा अब सफ़ीना चूमता इक इक लहर
ऐ समंदर लाख तू तूफां बुला कर देख ले।

ऐ अमीरी आज अपने ज़ोर का कर ले पता
आ गरीबी से मेरी पंजा लड़ा कर देख ले।

बेतहाशा दो लुटा दौलत, मगर अफ़सोस है
हर मरासिम बेवफ़ा है, आज़मा कर देख ले।


</poem>
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