1,556 bytes added,
11:19, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
लगाम कुछ तो लगाओ ज़बान के ऊपर
लगे न दाग़ सुख़नवर की शान के ऊपर।
समझ में आता नहीं अब मिजाज़ मौसम का
भरोसा घटने लगा आसमान के ऊपर।
बिना उधार लिए घर की हो गई कुर्की
ये घोर ज़ुल्म है या रब किसान के ऊपर।
फ़सल पूरी करेगी ये पूरी कभी न उम्मीदें
निगाह सिर्फ रही गर लगान के ऊपर।
जो लात मार रहा पेट पर गरीबों के
उसे बिठाओ न यारों मचान के ऊपर।
उन्हें ये होश नहीं इसका हश्र क्या होगा
चढ़ा कभी जो ये दरिया निशान के ऊपर ।
ये ताजो-तख्त बदलना है इस दफे 'विश्वास'
चढ़ा लो तीर सभी अब कमान के ऊपर।
</poem>