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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
सफ़र पर दोस्त होना कल रवाना आज रहने दो
सितारों कल फ़लक पर जगमगाना आज रहने दो।

बड़ी मसरूफियत है आजकल जाना ज़रूरी है
बहाना ऐसा कोई कल बनाना आज रहने दो।

लगाने आये ज़ख़्मों पर अगर फाहा गुज़ारिश है
तसल्ली से ये फाहे कल लगाना आज रहने दो।

बही में दर्ज दो बोसे चुकाना कर्ज बाकी है
सनम जूड़े में ये गुल कल सजाना आज रहने दो।

भुला कर दीन दुनिया दिल हुआ क़ुर्बान है तुम पर
इसे फ़िरक़ापरस्ती कल सिखाना आज रहने दो।

ठहरने से न क़तराओ खुशी दे दो हमें इक शब
कहेगा क्या ज़माना कल बताना आज रहने दो।

बहुत दिन बाद लाई खुशनुमा पल ज़िन्दगी है, अब
ये सर कांधे से अपने कल हटाना आज रहने दो।

उड़ी अफवाह थी 'विश्वास' कुछ दिल तोड़ने वाली
मगर किस्सा हमें वो कल सुनाना आज रहने दो।


</poem>
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