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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
ताप त्रय का यदि महो-दधि लांघना है
मार्ग केवल सत्य की आराधना है।

देख कर दूरी कभी संशय न करना
भूमि का आकाश से रिश्ता घना है।

ढक रहा है अधखुला तन ये अंधेरा
मत उजाला कीजिये ये प्रार्थना है।

चाहते हैं टूटकर शायद बरसना
बादलों का शामियाना फिर तना है।

तोड़ डाला आपने कच्चे घड़े को
यह किसी के शिल्प की अवहेलना है।

चांद तारों से सुसज्जित है जो अम्बर
शुद्ध सात्विक प्रेम के बल पर तना है।

व्यक्ति ईर्ष्या लोभ लिप्सा से परे हो
मित्र कलयुग में हो कोरी कल्पना है।

बोल दूँ 'विश्वास' सच या चुप रहूँ मैं
युद्ध अपने-आप से भीषण ठना है।
</poem>
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