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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
थोड़ी खुशियां भी तलाशो और मन चोखा करो
सिर्फ पैसे के लिए मत रात दिन तड़पा करो।

दूसरों पर तंज़ से पहले बड़ों की राय है
अपना चेहरा आइने में गौर से देखा करो।

हर समस्या का मिले हल, खर्च हो कौड़ी नहीं
चांद पूनम का लगाकर टकटकी देखा करो।

और कोई बात बोलो मान लेंगे हम मगर
गीत 'वंदे मातरम' गाने से मत टोका करो।

वक़्त के पैरों में बेशक डाल देना बेड़ियाँ
रास्ते लेकिन फ़क़ीरों के न तुम रोका करो।

वक़्त का पहिया चलेगा चाल अपनी, इसलिए
बाद क्या होगा हमारे, मत कभी सोचा करो।

मस्त रहने के लिए नुस्खा सुनो 'विश्वास' का
साथ बच्चों के ज़रा कुछ देर तक खेला करो।



</poem>
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