705 bytes added,
06:24, 25 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चन्द्र
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
उसकी लहू-सी लाल आँखों में
खतरनाक शोषण की डरावनी निशानियाँ
दिखती थी…
मैं देख रहा था उसे कि तभी
धाँय से
चीख़ते हुए
भीतर-बाहर पसीजते हुए
वहीं की पथरीली ज़मीन पर
बुरी तरह से गिर पड़ा था वह
और मेरे होठों पर
एक शब्द था —
आह !
</poem>