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|रचनाकार=सुनीता पाण्डेय 'सुरभि'
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<poem>
1

माई अपने भक्त को, कबहुँ न दीजे त्रास।
दर्द दूर सब कीजिए, सदा राखिए पास। ।
सदा राखिए पास, शरण से दूर न करिए.
सदा सुमंगल करो, खुशी से झोली भरिए॥
माँ तुम एक सहाय, प्रेम की ज्योति जलाई.
रखिये मेरी लाज, शरण हम आए माई॥

2

मैया भक्तों की तुम्हीं, एकमेव हो आस।
आन शरण में हम खड़े, हैं चरणों के दास॥
हैं चरणों के दास, चरण कैसे तज पाएँ,
छोड़ तुम्हारा द्वार, कहाँ मैया हम जाएँ।
कहे सुनीता आज, भँवर में डोले नैया।
आन लगाओ पार, सुनो विनती हे! मैया।

3

माता! सुन मेरी अरज, करो सदा कल्यान।
आय न विपदा कोई भी, रखो सदा माँ ध्यान॥
रखो सदा माँ ध्यान, विपति सारी हर लीजे.
देकर मुझको सुमति, दास पर करुणा कीजे॥
कर दो अब कल्याण, सकल जग गुण तव गाता।
महिमा अपरंपार, तुम्हारी अंबे माता॥
</poem>
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