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<poem>
बस राजा मरने वाला है
बाट जोहती बैठ रुदाली

महल-
अटारी पर रँगरेली
किसको फुर्सत है रोने की
राजा अमर
हुआ करता है
यही घड़ी है खुश होने की

मिलने वाला आज किसे अमृत है
किसको विष की प्‍याली

आँखों में
है लगे उतरने
अपने दुख अपनी पीड़ाएँ
भाप उठ रही
है समुद्र से
घिरने लगीं मेघ मालाएँ

बुक्‍का फाड़ इधर रोएगी
उधर सजायेंगे दीवाली

खुले केश
काले कपड़ों में
इनको मिला चोर-दरवाजा
देखे कहीं न
इस असगुन को
नयी उमंगों वाला राजा

गोपन सम्‍बंधों की गाथा
लिख जाती माथे पर गाली
</poem>
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