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शाम को जब माँएँ कभी अकेले में भी वह गठरी खोलती हैं
तो सबसे पहले अपनी अपने नसीब को कोसतेहुए,
कोख को धिक्कारते हुए
पिताओं को ख़ूब ग़ालियाँ देतीं हैं
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