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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
मिरा किस्सा कोई दोहरा रहा है
कि अपना दुख ग़ज़ल में गा रहा है।

बड़ा नादान है दिल आपका भी
जो मुझको छोड़कर पछता रहा है।

कोई साया न है आवाज़ ही कुछ
मगर नज़दीक कोई आ रहा है।

सिले होंठों का कैसा बोल है ये
जो मेरे दर्द को सहला रहा है।

किसे तू ढूंढता फिरता है आखिर
कि खुद को रोज़ खोता जा रहा है।

नहीं टिकता कहीं कुछ देर भी क्यों
मिरा हर जगह दिल उकता रहा है।

गुज़रना मज़हबों के शहर से है
मुसाफ़िर मन बहुत घबरा रहा है।

</poem>
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