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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
चल गया बहुत तो ग़म क्या है
अभी भी पास मव कम क्या है।

बला-ए-भूख तोड़ दे सब कुछ
उसूल क्या है ये क़सम क्या है।

मिरे ख़ुदा अगर तू सबमें है
तो फिर ये दौर क्या हरम क्या है।

हमारे तुम हो हम तुम्हारे हैं
अगर ये सच है तो भरम क्या है।

तमाम उम्र रहगुज़र पे कटी
मैं मर गया तो चश्मे-नम क्या है।

हरेक चोट ने दुआ दी है
हमें पता नहीं सितम क्या है।

तमाम ज़िन्दगी की शय हैं मगर
नहीं है तू तो ऐ सनम क्या है।


</poem>
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