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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
खून से तर शरीर ज़िंदा है
मेरा ज़ख़्मी ज़मीर ज़िंदा है।

वहां पांखड चल नहीं सकता
जहां कोई कबीर ज़िंदा है।

है हुक़ूमत तो मुफ़लिसी की मगर
मुल्क का हर अमीर ज़िंदा है।

इक पियादा हो जब तलक ज़िंदा
तो समझना वज़ीर ज़िंदा है।

कोई इससे बड़ी तो खींचे अब
मेरी छोटी लकीर ज़िंदा है।

तेरी दुनिया में मर गयी होगी
मेरी दुनिया में हीर ज़िंदा है।

पूछियो मत फ़िराक़ ग़ालिब से
मेरी ग़ज़लों में मीर ज़िंदा है।

</poem>
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