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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
खौलते पानी में डाला जायेगा
यूँ हमें धोया-खंगाला जायेगा

लूटने में लड़ पड़ें आपस में हम
इस तरह सिक्का उछाला जायेगा।

फिर मेरी मजबूरियों का देखना
दूसरा मतलब निकाला जायेगा।

एक मजहब के बताओ नाम पर
तख्त को कितना संभाला जायेगा।

कुछ अंधेरा हम भी लेकर घर चलें
तब कहीं घर-घर उजाला जायेगा।

मुझपे चलती हैं हथौड़ी छेनियां
मुझमें कोई अक्स ढाला जायेगा।

फिर हमारी ज़िन्दगी का फैसला
कल के जैसे कल पे टाला जायेगा।

बकरियों-गायों को लेकर चल 'नयन'
अब यहां बाघों को पाला जायेगा।

</poem>
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