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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
यारो कभी-कभी हमें मर जाना चाहिए
उल्फ़त में हद के पर गुज़र जाना चाहिए।

तूफ़ान है उठा यहां हर दिल में दर्द का
कुछ दिन इसी नगर में ठहर जाना चाहिए।

मानोगे तुम नहीं तो कभी बोलेंगे नहीं
बच्चों की धमकियों से तो डर जाना चाहिए।

माना कि सिर्फ होगी क़ियामत उधर जनाब
लेकिन जो दिल कहे तो उधर जाना चाहिए।

पहले तो कितना गहरा है दरिया पता चले
यूँ ही नहीं दिलों में उतर जाना चाहिए।

दीवाने हो अगर तो हो महफ़िल से दूर क्यों
दावत नहीं मिली है मगर जाना चाहिए।

कल फिर मिलेंगे शहरे-अदब हम ग़ज़ल लिए
अब रात ढल चुकी हमें घर जाना चाहिए।

</poem>
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