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05:33, 3 जून 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
सुब्ह को हां-हां कहा शाम को ना-ना बाबा
कितनी तेज़ी से बदलता है ज़माना बाबा।
अद्ल ईमान वफ़ा ढूंढ रहे हो अब भी
तुम तो सचमुच हो पुराना का पुराना बाबा।
बढ़ गया जुर्म बहुत और हुए मुजरिम गायब
जब से बस्ती में नया खुल गया थाना बाबा।
गिर पड़ो तुम जो सड़क पर तो उठाये न कोई
भूलकर भी न मिरे शहर में आना बाबा।
सिर्फ बदतर नहीं बेहतर भी है दुनिया अपनी
मैंने आंखों से तिरी देख के जाना बाबा।
एक आवारा-सा बदनाम-सा बेकार-सा शख्स
मुझसे मिलना हो तो बस इतना बताना बाबा।
हमको मालूम है नाराज़ ज़माने से हो तुम
आओ फिर साथ ही हंगामा मचाना बाबा।
</poem>