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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
वुजूद अपना कभी तार-तार मत करना
हमारी मौत का हरगिज़ क़रार मत करना।

लहू हमारा भले मुफ्त तोल दो लेकिन
ज़मीर बेचने का कारोबार मत करना।

तुम्हें क़सम है तुम्हारी वतनपरस्ती की
ये सरज़मीन कभी दाग़दार मत करना।

लकीर खून से खींची है जो शहीदों ने
उसे भुला के कभी हद को पर मत करना।

बिख़र चुके हैं कई बार कितने मुद्दों पर
किसी भी हाल में फिर इंतशार मत करना।

मुआहदा न कहो मौत का है परवाना
भरम में उस पे दिलो-जाँ निसार मत करना।

फरेबियों ने दिखाये हैं ख़्वाब ख़ूब मगर
ये सच न होंगे इनका इंतज़ार मत करना।
</poem>
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