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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
मत सोच कोई दूसरा तुझसे बड़ा नहीं
ये और बात है तुझे उसका पता नहीं।

आसूदगी से अपनी तो मैं हूँ खफ़ा मगर
अब मेरे पास अश्क़ का क़तरा बचा नहीं।

मैं जानता हूँ खुदकुशी करना गुनाह है
जीने का दिल में अब मगर वो हौसला नहीं।

सब कुछ है तेरे पास मेरे पास कुछ नहीं
अब तेरे-मेरे बीच कोई फासला नहीं।

मैं जी रहा हूँ कम नहीं इतना मिरे लिए
सर पर मिरे ख़ुदा क़सम कोई ख़ुदा नहीं।

मुंसिफ बने हो तुम मिरा तो सोच लो ज़रा
इंसाफ़ मांगने चला हूँ फैसला नहीं।

जैसे लड़ोगे मुझसे मैं वैसे लड़ूंगा अब
मैदाने-जंग है ये कोई कर्बला नहीं।

रहता हूँ ठीक-ठाक से राज़ी-खुशी के साथ
पर माँ क़सम ये बात कोई मानता नहीं।

</poem>
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