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05:35, 3 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपना नहीं है फिर भी तू लगता तो है कोई
दुश्मन का ही सही मगर रिश्ता तो है कोई।
आंखों में जितनी आग तिरी है वो कम नहीं
इस शहरे-बेचिराग़ में जलता तो है कोई।
आती है एक याद मिरे पास रात को
दिल पर किसी का आज भी पहरा तो है कोई।
सच है लहूलुहान तो होंगे हमारे पैर
तुझ तक मगर पहुंचने का रस्ता तो है कोई।
बस इतना है कि इसको नहीं खोलते हैं हम
दोनों तरफ किवाड़-सा खुलता तो है कोई।
कोई नहीं है साथ मिरे साये के सिवा
मैं चल रहा हूँ फिर भी कि चलता तो है कोई।
शायद कभी न कहता मगर माँ क़सम सुनो
जीता है तुमको देख के मरता तो है कोई।
</poem>