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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
अजीब शख्स है वो जो तबाह-हाल रहा
तमाम उम्र मगर फिर भी बा-कमाल रहा।

मिला न वक़्त कभी खुद से मिलने का ही मुझे
कि सामने तो मिरे आपका सवाल रहा।

मुझे मुआफ़ करो ऐ मिरे अज़ीज़ ग़मो
मैं सोचने में कोई शेर बेखयाल रहा।

मिरे लहू में ग़ुलामी तो क्या मैं करूँ
मैं अदना शख्स तुम्हारे लिए बवाल रहा।

बदल गया है बहुत कुछ मगर ये कैसे कहूँ
पुराने दर्द में लिपटा नया ये साल रहा।

समझ सके न मसाइल को आप हम भी कभी
हमारे बीच कोई तीसरा दलाल रहा।

लहूलुहान हुए तीलियाँ हिला दिन मगर
क़फ़स के पंछियों को कुछ न फिर मलाल रहा।
</poem>
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