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05:40, 3 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
सच है जो बात कहूँ न कहूँ
रात को रात कहूँ या न कहूँ।
पड़ गया सोच में मैं सुन कर तुम्हें
अपने हालात कहूँ या न कहूँ।
मान जाएंगे बहुत लोग बुरा
खुल के जज़्बात कहूँ या न कहूँ।
जीत पाया न किसी दिल को कभी
अपनी मैं मात कहूँ या न कहूँ।
पास रहकर भी कहा कुछ भी नहीं
ये मुलाक़ात कहूँ या न कहूँ।
दिल मिरा मुझको भुला देता है
उसकी ये घात कहूँ या न कहूँ।
ज़िंदा रखने की मुझे कोशिश है
इसको ख़ैरात कहूँ या न कहूँ।-
</poem>