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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
सच है जो बात कहूँ न कहूँ
रात को रात कहूँ या न कहूँ।

पड़ गया सोच में मैं सुन कर तुम्हें
अपने हालात कहूँ या न कहूँ।

मान जाएंगे बहुत लोग बुरा
खुल के जज़्बात कहूँ या न कहूँ।

जीत पाया न किसी दिल को कभी
अपनी मैं मात कहूँ या न कहूँ।

पास रहकर भी कहा कुछ भी नहीं
ये मुलाक़ात कहूँ या न कहूँ।

दिल मिरा मुझको भुला देता है
उसकी ये घात कहूँ या न कहूँ।

ज़िंदा रखने की मुझे कोशिश है
इसको ख़ैरात कहूँ या न कहूँ।-
</poem>
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