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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
कच्ची सड़क कच्ची गली को कौन ले गया
मिट्टी में लिपटी ज़िन्दगी को कौन ले गया।

मुद्दत हुई मुझको किसी को कुछ दिये हुए
मुझसे मिरी दरियादिली को कौन ले गया।

अख़लाक़ से लबरेज़ बस्तियों से पूछिए
मेहमान था जो अजनबी को कौन ले गया।

बर्गर हमारे हाथ में थमा के इस तरह
मिसरी की वो गुड़ की डली को कौन ले गया।

दम घुट रहा है माँ क़सम मिरा किताब में
यारब मिरी आवारगी को कौन ले गया।

मिलती थी जो पाने की तुमको चाह में मुझे
तुम मिल गये तो उस खुशी को कौन ले गया।

कैसे जिऊँगा मैं करूँगा कैसे अब भला
ऐ राहते-जाँ बेकली को कौन ले गया।

</poem>
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