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05:51, 3 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रुत है अभी खुश होने की
उम्र पड़ी है रोने की।
दिल ही बचाना होता है
बाक़ी चीज़ें खोने की।
चांद-सितारों से पूछो
रात बनी क्या सोने की।
बोझ बने कुछ रिश्तों को
क्या है ज़रूरत ढोने की।
पार उतरने की इक ज़िद
ज़िद इक नाव डुबोने की।
इतनी मशक्कत पर मुझको
जगह मिली है कोने की।
दर्द व आंसू कटने के
प्यार की फसलें बोने की।
</poem>