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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
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|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
कोई रिश्ता हो कुछ अपनी ज़रूरत ढूंढते हैं हम
किसी से दुश्मनी भी तो लज़्ज़त ढूंढते हैं हम।

ज़माना रंग कितना बारहा अपना बदलना है
मगर फिर भी ज़माने में शराफ़त ढूंढते हैं हम।

नये लोगों के जीने का नया अंदाज़ है अच्छा
मगर अल्ला क़सम थोड़ी रिवायत ढूंढते हैं हम।

पसीना ही ज़मीं की ख़ाक को गौहर बनाता है
सो हर इक शख्स में मेहनत मशक्कत ढूंढते हैं हम।

क़दम को फूंककर रखते हैं हम तो क्या बुरा इसमें
कि हो तारीफ जब अपनी शिकायत ढूंढते हैं हम।

भगतसिंह अपने बच्चों को कभी बनने नहीं देते
मगर औरों के बच्चों में शहादत ढूंढते हैं हम।


</poem>
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