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06:47, 3 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जो हमारे रक़ीब होते हैं
हम उन्हीं के करीब होते हैं।
ख़ूब रोते हैं ख़ूब हंसते हैं
वो जो बिल्कुल गरीब होते हैं।।
ढूंढ़ते हैं पनाह अश्क़ों की
अहले दिल भी अजीब होते हैं।
बेबसी पर ज़माने वालों की
रोने वाले अदीब होते हैं।
दौलते दिल न अबको मिलती है
लोग कुछ बदनसीब होते हैं।
जानते हैं अदाएं जीने की
जो भी अहले सलीब होते हैं।
करते रहते हैं सिर्फ तनक़ीदें
अस्ल में वो हबीब होते हैं।
</poem>