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06:48, 3 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मिरी आंखों में तेरी परसाई झूम जाती है
लिखूं जो नाम तेरा रौशनाई झूम जाती है।
नज़र नीची लबों में हो दबी सी मुस्कुराहट तो
उसी मासूमियत पर रहनुमाई झूम जाती है।
महब्बत के फ़साने में फ़क़त मिलना नहीं होता
दिलों के खेल में अक्सर जुदाई झूम जाती है।
जुदाई में हमारी बेक़रारी जब भी बढ़ती है
ख़यालों में तिरी नाज़ुक कलाई झूम जाती है।
दिलों की वादियां जब भी तराने छेड़ देती है
जुनूने-इश्क़ में पागल तराई झूम जाती है।
ज़फाएं तेरी हरदम याद रहती हैं मुझे फिर भी
तबस्सुम देखकर तेरी वफाई झूम जाती है।
किसी की बेदिली से जब कभी दिल टूट जाता है
तो ऐसे में तुम्हारी आशनाई झूम जाती है।
ग़ज़ल से जब किसी के प्यार की ख़ुशबू छलकती है
क़सम अल्लाह की सारी खुदाई झूम जाती है।
</poem>