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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार नयन
|अनुवादक=
|संग्रह=दयारे हयात में / कुमार नयन
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<poem>
यहीं तो था कहीं खोया नहीं था
मैं सपने में तो था सोया नहीं था।

चलो अच्छा हुआ तुम मिल गये फिर
बड़ी मुद्दत से मैं रोया नहीं था।

मुक़द्दस फूल थे तुम कैसे छूता
कि मैंने हाथ ही धोया नहीं था।

ये होगी इतना भारी क्या पता था
किसी की सांस यूँ ढोया नहीं था।

मिरी आंखों के आंसू हंस रहे हैं
तिरे ख्वाबों को तो बोया नहीं था।

मशीनों की तरह क्या लोग थे वो
कि कुछ एहसास ही गोया नहीं था।

</poem>
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