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[[Category: सेदोका]]
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52
अतीत बीता
क्यों रोया जाए सदा
उसको आज सी लें
तुझे देख मुस्काएँ।
'मेरे अधर
देखो मद से भरे
धो उदासी मन की
हँसो चूम लो मुझे।
बिछुड़े साथी,
जिनकी राहें मुड़ी
ग्रंथि-बन्धन किया
मन से मन सदा।
सूखी घास ही
जले पलभर में
हम ठहरे लौह
पिंघलेंगे,जलें ना।
तय किया था
हमने मिलकर