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07:33, 12 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रहम कर मालिक नया समान भेज दे
दिल को बहलाने का कुछ सामान भेज दे।
बेइमानों से घिरी चौपाल रो रही
गांव में इक साहिबे-ईमान भेज दे।
डस रही तन्हाइयों का दौर खत्म कर
घर हमारे एक-दो मेहमान भेज दे।
औरतों पर ज़ुल्म हो बेइंतिहा जहां
तू वहां पर ज़लज़ला तूफ़ान भेज दे।
चाह तो है, 'भोज' 'विक्रम' चंद्रगुप्त सा
तख्त पर फिर से कोई सुल्तान भेज दे।
दे बना सोने की चिड़िया इसको आज फिर
कुछ फ़रिश्ते फिर ज़े हिन्दोस्तान भेज दे।
भेज दे 'विश्वास' बेहतर जो तुझे लगे
ईद गर मुमकिन न हो रमज़ान भेज दे।
</poem>