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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>कीजिए कुछ तो कम, नहीं अच्छे
दिल में इस दरजा ग़म नहीं अच्छे

बस तबाही के सीन देखें जाएं
यार इतने तो हम नहीं अच्छे

दुश्मनों को सुकून मिलता है
रोज़ ये दीदा नम नहीं अच्छे

दिख रहा कुछ है लिख रहे कुछ हैं
यानी एहले क़लम नहीं अच्छे

हम बुरे हैं हमें क़ुबूल मगर
आप भी मोहतरम नहीं अच्छे

अपनी ख़ामोशियों का मतलब है
आप एहले सितम नहीं अच्छे

</poem>