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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>जो भी, जब भी दिलेर बोलते हैं
कर के दुश्मन को ज़ेर बोलते हैं

कितनी जल्दी समझ मे आती है
बात जब धन कुबैर बोलते हैं

जिनको सच बोलने की आदत है
ख़ौफ़ व दहशत बग़ैर बोलते हैं

बोलते कुछ हैं दोस्तों से हम
कर के वो हेर फेर बोलते हैं

याद आती हैं बात अपनों की
जब मोहब्बत से ग़ैर बोलते हैं </poem>