749 bytes added,
02:02, 14 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>शाम ढले घर आने जाने लगते हैं
याद के पंछी शोर मचाने लगते हैं
सच्चाई जब हम को मुजरिम ठहराये
आईनों पर हम झुंझलाने लगते हैं
मजबूरी जब होंटों को सी देती है
आँसू दिल का दर्द बताने लगते हैं
ख़ुशहाली का बस एलान किया जाए
घर में रिश्ते आने जाने लगते हैं</poem>