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घिर गया तिमिर गहरा,<br>
उठ रहा दर्द है !<br>
हवा सर्द है !<br>::(20) अनाहूत स्थितियों से जीवन दिया है<br>तो<br>प्यार भी दो !<br>प्यास दी है<br>रसधार भी दो !<br><br> जब दिया है रूप<br>आत्मा को<br>सुघड़ तन-शृंगार भी दो !<br>उर दिया है<br>भावना का ज्वार भी दो !<br><br> मत करो वंचित<br>सहज अनुभूतियों से<br>इस तरह -<br>जीवन कि जीना बोझ बन जाए,<br>सब उम्र कट जाए<br>बिन गीत गाए<br>स्नेह-सुषमा का <br>सुखद सावन सजाए !<br><br> ज्योति का आकाश<br>आँखों को दिया<br>तो<br>अनगिनत सपने सुहाने<br>झूलने दो !<br>दर्द आँहों से<br>तनिक तो<br>चेतना को भूलने दो !<br><br> मत कसो<br>मजबूरियों की रस्सियों से<br>इस तरह —<br>पल भर<br>फड़फड़ा भी जो न पाएँ<br>वासनाओं के विखंडित पंख !<br>अनपेक्षित घृणा की<br>कील मत ठोंको<br>धड़कते वक्ष पर !<br>अंगार मत फेंको<br>सरल आसक्त आँखों पर !<br><br> जीवन दिया है<br>तो<br>लेने दो<br>हर फूल की मधु गंध,<br>जीवन दिया है<br>तो<br>सोने दो<br>हर लता के अंक में निर्बन्ध !<br>