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Kavita Kosh से
प्रतीक्षा करती हुई
रात से अलग हुआ दिन
और धरती आदिम जल से
हमें जकड़ने के लिए
जब बढ़ रहा था अँधेराअन्धेरा
धरती के भीतर बढ़ रही थीं जड़ें
रोशनी के लिए
सूरज थर्रा उठा था
और जानवर
धीरे-धीरे बदल रहे थे अपना आकार
धीरे-धीरे बना रहे थे स्वयं स्वयँ को वे
जल और वायु के अनुकूल
तुम हमेशा आवाज़ रहे मनुष्य की
आकार लेती धरती का गीत रहे
प्रकृति की गति रहे और नदी का संगीत सँगीत रहे
तुम्हारे दिल पर
जैसे किसी चट्टान पर गिरी कोई नदी
और चट्टान गा उठी
सब मूक लोगों की संगठित सँगठित आवाज़ में
तुम्हारी आवाज़ ने
सब चीज़ों, सब लोगों के रक्त को
और धरती व आकाश
अग्नि औ’ अँधेरा अन्धेरा औ’ पानी
जाग उठे सब तुम्हारे गीतों से
पर बाद में
फिर अँधेरा अन्धेरा छा गया आकाश पर
निकली हरी लपट
भय, युद्ध, पीड़ा और कष्टों से
राख बधित लोगों की
जो भट्टियों में चले गए
अपने माथे पर नंबर नम्बर चिपकाए
केश रहित
स्त्री-पुरुष, जवान औ’ बूढ़े
इकट्ठे हुए
दोबारा
तब
पॉल रॉब्सन
तुमने गायागाए गीत
और पुनः इस धरती पर
सुनी गई
हमें याद करा रही थी
शानदार, शांतशान्त, अनगढ़ और निश्छल
धरती की आवाज़
कि हम अब भी आदमी हैं
अपराध से
एक बार फिर रोशनी
अलग हुई थी अँधेरे अन्धेरे से
गिरी उदासी
हिरोशिमा पर
शेष नहीं बचा कुछ भी
नहीं बची एक भी चिड़िया
बिलखते अपने बच्चे के साथ
नहीं बची एक भी माँ
आकाश से गिरी मौत की ख़ामोशी जब
और पुनःफिर
मनुष्य की आवाज़ के
पुनरुत्थान के लिए
गहरे कहीं गूँजती आशाओं के लिए
पिता औ’ भाई पॉल
तुमने गायागाए गीत
तुम्हारे हृदय की नदी
चौड़ी और गहरी थी अधिक
सिर्फ़ नीग्रो आवाज़ का
सिर्फ़ अपनी जाति में कहूँ तुम्हें महान
अपने संगीत सँगीत की ख़ूबसूरत धुनों के बीचयद्यपि तुमने गायागाए गीत
केवल उन काले बच्चों के बारे में
जिन्हें हथकड़ी पहनाई थी
ज्वालामुखी की भूमि पर
और अग्नि में भस्म हुई
सतयुगी धर्मांधताधर्मान्धता
शिकारी था उत्तेजित और अविश्वासी
तब तुम रुके नहीं, गाते रहे सदा ही
बने तुम नदी कभी भूमिगत
औ’ कभी तुमने भेदा
गहन अँधेरे अन्धेरे में झलकते प्रकाश को
तुम
मरते हुए सम्मान की
सदा बनी रहने वाली गड़गड़ाहट थे
रक्षक थे आदमी की रोटी के
सम्मान थे
आशा थे
प्रकाश थे मनुष्य के लिए
हमारे लिए सूरज थे
अमरीकी उपनगरों के सूरज तुम
सूरज थे एंडेस एण्डेस की लाल बर्फ़ के
तुम हमारी रोशनी के प्रहरी थे
गाओ
कॉमरेड गाओ
धरती के भाई ! तुम गाओअग्नि के अच्छे पिता!
हम सबके लिए गाओ
उन सबके लिए गाओ
जो मछलियाँ पकड़ते हैं
या ठोंकते हैं कीलें अपने हथौड़ों से
कातते हैं रेशम के क्रूर कठोर धागे
या कूटते हैं काग़ज़ की लुगदी
छापते हैं जो मशीनों पर रात-दिन
पिस रहे हैं दोहरे अत्याचार में
और जो खड़े हैं भट्टी के सामने
पिघलते तांबे ताम्बे के लिए
गलते लोहे के लिए
बारह हज़ार फ़ीट ऊपर
गाओ
अब
दूर उराल में
तुम गा रहे हो
दूर बहुत दूर
और समुद्र
भट्टी झोंकने वाला वह युवक
घूमता हुआ शिकारी
वह सज्जन विद्वान
सुन रहा है
तुम्हारे गीतों की
तुम गाते हो इसीलिए
जानते हैं वे सब
कि समुद्र ज़िंदा ज़िन्दा हैऔ औ’ गाता है वह
मेरे दोस्त
वे जानते हैं कि
विशाल और चौड़ा है, फूलों से भरा है
तुम्हारी आवाज़ की तरह
सूरज हमारा है, धरती हमारी होगी
ओ सागर के प्रकाशस्तंभप्रकाशस्तम्भ !
तुम गाते रहोगे लगातार ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : [[अनिल जनविजय]]'''
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