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|रचनाकार=कृष्ण 'कुमार' प्रजापति
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<poem>
सबपे मौला मेहरबां हो ऐसा होना चाहिए
हर किसी का आशियाँ हो ऐसा होना चाहिए

तू शरीके कारवाँ है ये बहुत अच्छा नहीं
तेरे पीछे कारवाँ हो ऐसा होना चाहिए

चाँद सूरज ख़ुद उगाएँ रोशनी के वास्ते
अपनी धरती आसमाँ हो ऐसा होना चाहिए

बेवफ़ाई का रहे काँटों पे ही इल्ज़ाम क्यूँ
बावफ़ा ये बागवाँ हो ऐसा होना चाहिए

सो रहा है चैन से प्रधान लंबी तान के
हर तरफ़ अम्नो अमाँ हो ऐसा होना चाहिए

सबने अपनी ज़िन्दगी मे अपना अफ़साना लिखा
तेरी भी इक दास्ताँ हो ऐसा होना चाहिए

कैसे समझूँ तू मुहब्बत का पुजारी है “कुमार”
तेरे शेरों से अयां हो ऐसा होना चाहिए
</poem>
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