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<poem>
रात ट्राम और घड़ी
तीनों हैं सहेलियां
तीनों बिल्कुल एक जैसी
तीनों चलती हैं लगातार
बोझ उठाए हुए
अनगिन अनसुनी चीखों और आंसुओं के बुरादे का
टूटे हुए सपनों और नादान दिलों की किरचों का
अलज़ाइमर, डिमेंशिया, सीज़ोफ्रेनिया में लिपटी लाशों का
क्रूरताओं हत्याओं के लिए हथियार बने
मासूमियत, मुलामियत लिए सुर्ख़ लाल चेहरों का।

एक जैसा है
तीनों का इंतज़ार भी...
अपने-अपने वक़्त के बदलने का।
</poem>
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