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गीतिका - 2 / सुनीता शानू

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<poem>
मोहब्बत की बातें होठों पर होती नही हैं।
आँखें खुद बताती हैं छुपाकर सोती नही हैं।

कहने से पहले बात हर जान जाते है।
रूह को भी उनसे शिकायत होती नही हैं।

लाख छुपालें पर आँखें बता ही देती हैं
तनहाई में हालत बेहतर होती नही हैं।
उनके हँसने का कुछ अंदाज ही है ऎसा
कि पायल में भी ऎसी खनक होती नही हैं।

समन्दर की गहराई साहिल क्या जाने
कभी मीनारे खड़ी झूठ पर होती नहीं हैं।
</poem>
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