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नन्हा सा सपना / सुनीता शानू

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<poem>
मन के
आँगन की माटी को
सौंप दिये
अरमानों के बीज

सौंधी-सौंधी
खुशबू से लिपटे
आशाओं के
पानी से सीँचें
स्वर्ण किरणों ने
प्यार उँड़ेला
तब नन्हे-नन्हे
अँकुर फूटे

मीठा-मीठा
कोमल मखमली
कोंपल के जैसा
अहसास
हृदय में जागा
विश्वास ने
जड़े फैलाई
सुन्दर मधुर
संगीत लिये
फैलाती बाँहें आई पुरवाई

मन में सोये
तार बजे
सपनों ने ली
अंगड़ाई
सोई हूक
जगाने वाला
स्वर्णिम पल है
आने वाला
सपने जब होंगे पूरे
सुन्दर-सुन्दर रंग-बिरंगे
आँगन में
खूब खिलेंगे
भाव घनेरे
सूने मन में
बातें होंगी
चिड़ियों सी
चह-चहाहट होगी

रंग-बिरंगी तितली जैसी
खुशबू होगी
छूकर मुझको यहाँ-वहाँ
फैलेगी वह
जाने कहाँ-कहाँ...
</poem>
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