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15:16, 9 जुलाई 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुनीता शानू
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|संग्रह=
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<poem>
कहा था एक दिन तुमने
पराई अमानत है
ये बच्ची
तभी से आज तक माँ
मै अपना घर ढूँढती हूँ
कभी था बाग में तेरे
चिड़ियों का डेरा
मेरी चहचहाहट से
मुझे तू चिडिया कहती थी
कि एक दिन फ़ुर्र हो जाना
बेटी पराई है
तुझे तो अपने घर जाना
तभी से आज तक माँ
मै अपना घर ढूँढती हूँ
कभी तेरे चमन में
उगी थी फूलों की क्यारी
मै सबसे लाडली थी
बाबुल को प्यारी
मगर तुने कहा था
एक दिन तुझको
घर अपने जाना है
तभी से आज तक माँ
मै अपना घर ढूँढती हूँ
पराई सुन सुन के
हो गई पराई मै
भैया के संग जन्मी
फिर भी हरज़ाई मै
सुना है कल गुड़िया को भी तो
गुड्डे के घर होगा जाना
तभी से आज तक माँ
मै अपना घर ढूँढती हूँ
मेरा वजूद तुझसे था
मगर कहा था दादी ने
दादी की दादी ने कि
तू भी पराई थी
यही दोहराती है तारीखें
कि बेटी तो पराई है
मगर माँ सच बतला
घर कौनसा है अपना
जहाँ बेटी बस बेटी है
तभी से आज तक माँ
मै अपना घर ढूँढती हूँ
</poem>