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कन्यादान / सुनीता शानू

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<poem>
इतिहास ने फिर धकेलकर
कटघरे में ला खड़ा किया
अनुत्तरित प्रश्नो को लेकर
आक्षेप समाज पर किया

कन्यादान एक महादान है
बस कथन यही एक सुना
धन पराया कह-कह कर
नारी अस्तित्व का दमन सुना

गाय, भैस, बकरी है कोई
या वस्तु जो दान किया
अपमानित हर बार हुई
हर जन्म में कन्यादान किया

क्या आशय है इस दान का
प्रत्यक्ष कोई तो कर जाये
जगनिर्मात्री ही क्यूँकर
वस्तु दान की कहलाये

जीवन-भर की जमा-पूँजी को
क्यों पराया आज किया
लाड़-प्यार से पाला जिसको
दान-पात्र में डाल दिया

बरसों बीत गये उलझन में
न कोई सुलझा पाये
नारी है सहनिर्मात्री समाज की
क्यूँ ये समझ ना आये

हर पीडा़ सह-कर जिसने
नव-जीवन निर्माण किया
आज उसी को दान कर रहे
जिसने जीवन दान दिया॥
</poem>
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