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15:41, 9 जुलाई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुनीता शानू
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरा बार-बार कहना
एक ही बात दोहराना
वही बात
कुछ बाकी तो नही रह गया
तुमसे कुछ कहना
एक के बाद एक
कहते चले जाना
एक ही सवाल
जो कहा है जाने कितनी बार
नया कुछ भी नही
किन्तु लगता है नया नया
तुम्हारा चिढ़ाना
मेरा बार-बार वही दोहराना
तुम जानते हो सब कुछ
फिर भी
कहो ना
कुछ बाकी तो नही रह गया
तुमसे कुछ कहना।
</poem>