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|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
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<poem>
बाकी सब शुभ-समाचार है।

मिथ्या नव अध्याय गढ़े हैं,
अवनति के सोपान चढ़े हैं।
उन्नति का आलेख मृषा है,
क्षुधा बलवती तीव्र तृषा है॥

कृषि प्रधान देश है भूखा,
अन्नपूर्णा शर्मसार है।

काल पृष्ठ पर आहत अंकन,
विरुदावली छद्म का मंचन।
प्रतिभायें नेपथ्य विराजित,
झूठ-सत्य में सत्य पराजित॥

चढ़ी मुखौटों मंद हँसी है,
रुदन हृदय में जार-जार है।

बोनसाई नित महिमा मंडित,
तुलसी चौरे हुये विखंडित।
अपसंस्कृति का गर्दभ गायन,
संस्कारों का हुआ पलायन॥

आलेखों में साफ दिख रहा,
चाटुकारिता कारगार है।

है अवाम गांधारी खाला,
स्वविवेक पर ताला डाला।
वैमनस्यता का नित पोषण,
निज बांधव नव दोषारोपण॥

हम मंगल पर जा पहुँचे हैं,
समरसता बस तार-तार है।

बाकी सब शुभ-समाचार है॥
</poem>
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