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|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
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<poem>
शारदे निखार दे, शब्द-शब्द धार दे।
लेखनी सदा चले, सत्य को लगा गले॥

हों सगे न गैर के, गीत छंद बैर के.
इक वृथा न हो कथा, दीन की कहें व्यथा॥

बात प्रेम की कहें, विश्व क्षेम की कहें।
छंद-छंद आस हो, बस यही प्रयास हो॥
</poem>
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