भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
रक्त पित्त की हो प्रधानता, चिड़चिड़ा आलसी और क्रोधी।
खाँसी से हो पेरु दर्द तो नक्स माँगता है रोगी॥
 
 
किसी से मिलना नहीं चाहता और अकेले लगता है डर।
करवट बदले सिर हिलाए आ जाए उसको चक्कर॥
 
नारी देख वीर्य गिर जाए, प्रेम रोग हो जाए अगर।
संगम की हो अदम्य इच्छा साथ में हो ध्वजभंग मगर॥
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,043
edits