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भ्रष्टाचार / मनोज झा

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<poem>
अब अपने कंधे पर रख लो पालो।
ये हमारे है-, वह हमारे है-,
इन सम्बंधोँ का वहम,
अपने दिल से निकालो-निकालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥1॥

दुःखी आँसुओँ की धार मेँ मत बहो,
दुनिया अगर भ्रष्ट है तो-
अपने को दुनिया के रंग मेँ ढालो,
अन्यथा टूट जाओगे,
घर से बाहर तक पैसे की माँग है।
अतः अपने को संहालो-संहालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥2॥

यहाँ कोई किसी का कहतोँ-महतोँ नहीँ है,
अफसर होँ या नेता-।
जेब मेँ हाथ डालो, पैसे निकालो,
और अपना काम बनालो-बनालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥3॥

क्या जेब मेँ पैसे नहीँ हैँ?
कलम मेँ ताकत नहीँ है?
तो उठालो-उठालो
अपने हाथोँ मेँ बंदूक उठालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥4॥

तुम्हारा भविष्य आतंकित था,
कहलाए-आतंकवादी।
अब देखो एक जनता तो क्या
सरकार तुम्हारे इशारे पर नाचती है,
समझौता चाहती है।
वाह! जमालो-जमालो
अपनी शाहंशाही खूब जमालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥ 5॥
</poem>
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